सहकारी खेती क्या है /इसके लाभ दोष बताइए/सहकारी का अर्थ , परिभाषा

सहकारी खेती से आशय उस कृषि प्रणाली से है, जिसके अन्तर्गत कृषि क्षेत्र के भूमिधर किसान स्वेच्छा से अपनी जमीनें एक में मिलाकर संयुक्त रूप से खेती करते हैं। वे अपनी जमीनों के अलग-अलग मालिक बने रहते हैं। केवल खेती-बाड़ी के लिए वे अपनी जमीनें एक में मिलाते हैं। खेती-बाड़ी के का कार्य सदस्यों द्वारा योजनानुसार किया जाता है। सदस्यों को उनके कार्य हो के बदले मजदूरी तथा उनकी भूमि के बदले लाभांश दिया जाता

सहकारी खेती के प्रकार

सहकारी खेती के मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं

• सहकारी काश्तकारी खेती

इसके अन्तर्गत कुछ लोग, जिनकी अपनी जमीन होती है, मिलकर एक सहकारी समिति का गठन करते हैं। सहकारी समिति ऋण, बीज, खाद आदि की सुविधाएँ प्रदान करती है तथा अपने सदस्यों के उपज का विक्रय करती है। जोत से होने वाली उपज पर किसान का अपना अधिकार होता है।

सहकारी सामूहिक खेती

इस प्रणाली के अन्तर्गत सदस्यों को अपनी भूमि का समर्पण करना पड़ता है। इसमें भूमि, पशु-धन और सामग्रियाँ साझी होती हैं। प्रबन्ध का कार्य निर्वाचित परिषदे करती हैं। इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को मजदूरी के अलावा अधिशेष उपज में हिस्सा मिलता है।

सहकारी बेहतर खेती

इसके अन्तर्गत गाँव के कुछ या सभी किसान खेती की उन्नत तकनीक का प्रयोग करने के लिए आपस में मिलते हैं। तथा सहकारिता का निर्माण करते हैं। इस व्यवस्था में प्रत्येक किसान स्वतन्त्र रहता है, वह अपनी जमीन का इच्छानुसार प्रयोग कर सकता है और जमीन उसके नाम ही रहती है। इस प्रकार की सहकारी समितियों को सेवा सहकारी समितियाँ भी कहा जाता है।

सहकारी संयुक्त खेती

इसके अन्तर्गत छोटे-छोटे किसान अपनी जमीनें एकत्र कर देते हैं और संयुक्त रूप में खेती की जाती है, किन्तु प्रत्येक किसान का अपनी भूमि पर स्वामित्व बना रहता है।

सहकारी खेती की वर्तमान स्थिति

मार्च, 1969 तक सहकारी खेती सम्बन्धी कार्यक्रम केन्द्रीय सरकार द्वारा संचालित था। इसके बाद यह राज्य सरकारों को दिया गया।

सहकारी खेती के लाभ

  • इससे छोटी एवं दूर-दूर बिखरी हुई जोतों की समस्या स्थायी तौर से हल हो जाती है।
  • व्यक्तिगत तौर से खेती करने पर होने वाले अपव्यय कम हो जाते हैं।
  • कृषि से सम्बन्धित अन्य अनेक समस्याएँ स्वयं ही हल हो जाएँगी यथा कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य–सिंचाई के लिए समुचित प्रबन्ध करना, भू-संरक्षण के लिए कार्यक्रम अपनाना, खेती के तौर-तरीकों में सुधार लाना, बहु-फसली खेती करना, माल-संग्रह के लिए गोदाम बनाना, डेरी व अन्य कृषि सम्बन्धित उद्योगों को चलाना आदि आसानी से किये जा सकेंगे।
  • कृषि भूमि में होने वाली वृद्धि से उत्पादन, परिवहन, व्यापार आदि विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

FAQ

सीमित पूँजी : साधरणतया सहकारी समितियों के सदस्य समाज के एक विशेष वर्ग के व्यक्ति ही होते हैं। इसलिए समिति द्वारा एकत्रित की गई पूंजी सीमित होती है।

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