Question डॉ. हरिसिंह गौर का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर
डॉ. हरिसिंह गौर का जन्म 26 जनवरी, सन् 1870 ई. में शनीचरी टौरी, सागर (म. प्र.) में हुआ था।
उन्होंने सेण्ट्रल प्रॉविंस कमीशन में अतिरिक्त सहायक आयुक्त के पद से त्यागपत्र दिया।
Question -छंद किसे कहते हैं छंद कितने प्रकार के होते हैं?
जिस रचना में मात्राओं और वर्णों की विशेष व्यवस्था तथा संगीतात्मक लय और गति की योजना रहती है, उसे ‘छन्द’ कहते हैं
छन्द चार प्रकार के होते हैं-
1-वर्णिक
2-मात्रिक
3-उभय
4-मुक्तक या स्वच्छन्द
Question 13 विद्या से व्यक्ति में कौन-कौन से गुण आते हैं?
Ans- शिक्षित होने की वजह से ही हम मनुष्य इस पृथ्वी के सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। विद्या, विनय देती है। विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है। कोई भी व्यक्ति वह चाहे किसी कुल में पैदा क्यों न हुआ हो, लेकिन विद्या सभी के लिए अनिवार्य है
Question 14 सालिम अली ने जिस घायल पक्षी को उठाया था, उसकी पहचान मुश्किल क्यों थी ?
उत्तर
सालिम अली ने एक घायल पक्षी को उठाया। वह पक्षी गौरेया जैसा लगता था परन्तु उस पक्षी के गले पर पीला धब्बा था। असमंजस में पड़ा हुआ सालिम अली उस पक्षी को अपने चाचा अमीरुद्दीन तैयबजी के पास ले गया और पूछा कि यह पक्षी किस किस्म का है। उसके चाचा इस विषय में कुछ भी नहीं जानते थे। इसके बाद उसके चाचा उस बालक को ‘बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ के ऑफिस में ले गए। वहाँ डब्लू. एस. मिलार्ड से परिचय करवाया। श्री मिलाई उक्त सोसाइटी के अवैतनिक सचिव थे। मिलार्ड ने अपनी एक दराज से मरे हुए पक्षी को उठाया। वह पक्षी बिल्कुल वैसा ही था जैसा वह बालक अपने साथ लाया था। वह एक नर पक्षी था। वह केवल वर्षा ऋतु में ही पहचाना जा सकता है क्योंकि वर्षा ऋतु में उसके गले पर पीला धब्बा उभर आता है। इसकी पहचान केवल बरसात के मौसम में ही हो पाती है।
Question 15 वसीयतनामे का अर्थ समझाइए।
उत्तर
सम्पत्ति के बँटवारे का लिखित आदेश वसीयतनामा कहा जाता है।
Que 22 ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में संसार को प्राचीन भारत की क्या देन है ?
उत्तर
ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में संसार को प्राचीन भारत की सबसे बड़ी देन है-शून्य सहित केवल दस अंक संकेतों से भी संख्याओं को व्यक्त करना। इस दाशमिक स्थान मान अंक पद्धति की खोज आर्यभट्ट से तीन-चार सौ वर्ष पहले हो चुकी थी। आर्यभट्ट इस नई अंक पद्धति से परिचित थे। उन्होंने अपने ग्रन्थ के शुरू में वृन्द (1000000000) अर्थात् अरब तक की दस गुणोत्तर संख्या संज्ञाएँ देकर लिखा है कि इनमें प्रत्येक स्थान अपने पिछले स्थान से दस गुना है। आर्यभट्ट ने हमारे देश में गणित-ज्योतिष के अध्ययन की एक नई स्वस्थ परम्परा शुरू की। इस तरह यह कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत ने ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में संसार को बहुत बड़ी उपलब्धि कराई