Rajasthan ki Rajat bunde|राजस्थान की रजत बूंदें

राजस्थान की रजत
बुँदे-अनु पम मिश्र



(पाठ का अभ्यास )

1. राजस्थान में कुंई किसे कहते हैं? इसकी गहराई और व्यास तथा सामान्य कुओं की गहराई और व्यास में क्या अंतर होता है?

उत्तर -राजस्थान में वर्षा के जल को एकत्रित करने के लिए कुंई का निर्माण किया जाता है। जब वर्षा अधिक मात्रा में होता है तो वह मरुभूमि में रेत की सतह में समा जाता है और धीरे-धीरे रिसकर कुंई में जमा हो जाता है। जिस स्थान में कुंई की खुदाई की जाती है, उस स्थान को ईंट और चूने द्वारा पक्का कर दिया जाता है।
कुंई की गहराई सामान्य कुओं की तरह ही होती है लेकिन इसके व्यास में बहुत अंतर होता है। सामान्य कुओं का व्यास पन्द्रह से बीस हाथ का होता है जबकि कुंई का व्यास चार या पाँच हाथ का होता ।

प्रश्न 2. दिनोंदिन बढ़ती पानी की समस्या से निपटने में यह पाठ आपकी कैसे मदद कर सकता है तथा देश के अन्य राज्यों में इसके लिए क्या उपाय हो रहे हैं ? जानें और लिखें ।

उत्तर -हमारे देश में दिनोंदिन पानी की समस्या बढ़ती जारही है। देश के कई ऐसे राज्य हैं जहाँ इस समस्या से निपटने के लिए अनेक उपाय किए जा रहे हैं। प्रस्तुत पाठ में जल संरक्षण के उपाय के बारे में बताया गया है। भारत के ऐसे बहुत क्षेत्र हैं जहाँ लोगों को पानी लाने के लिए दस किलोमीटर से भी अधिक दूरी तयकरके जाना पड़ता है। इन क्षेत्रों में
कुंई का निर्माणकरके इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।जहाँ कुंई का निर्माण न किया जा सके, वहाँ घर कीछतों और आँगन में वर्षा जल को संग्रहित किया जा सकता है।
राजस्थान के अतिरिक्त दक्षिण भारत के कई राज्यों
में भी जल संरक्षण के उपाय किए जा रहे हैं। जल
संरक्षण के लिए दक्षिण भारत के राज्य जैसे
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में विशाल
पथरीले जलाशयों में पानी एकत्रित किया जाता है।
इस प्रकार वहाँ की सरकारों द्वारा भी जल संरक्षण के लिए किए जाने वाले प्रयासों को प्रोत्साहन दिया
जा रहा है।

प्रश्न 3. चेजारो के साथ गाँव समाज के व्यवहार में पहले की तुलना में आज क्या फुर्क आया है, पाठ के आधार पर बताइए?
उत्तर- चेजारो अर्थात् चेलवाँजी यानी रेगिस्तान के रेतीले दुर्गम स्थानों पर धरती में काफी गहराई तक खुदाई करके मीठा पेयजल प्राप्त करने के उद्देश्य से ‘कुंई’ बनाने की कला में दक्षतम लोग राजस्थानी लोगों की प्यास बुझाने के लिए अथक परिश्रम करके कई का निर्माण करने वाले चेजारो जैसे ही मीठे जल स्रोत तक पहुँच जाते हैं तो कुंई की खुदाई चिनाई का कार्य वहीं समाप्त हो जाता है और चेजारो अत्यन्त सावधानीपूर्वक कुंई से बाहर आ जाते हैं। कुंई की सफलता उत्सव का रूप ले लेती है। मीठे पेयजल की प्राप्ति की प्रसन्नता में पुराने समय में कुंई निर्माण के पहले दिन से ही चेजारों का विशेष ध्यान रखा जाता था। कार्य पूर्ण होने पर उनके सम्मान में एक विशेष भोज का आयोजन किया जाता था। भोज पश्चात् चेजारो को विदाई के समय विभिन्न प्रकार के उपहार दिये जाते थे। चेजारो का गाँव के साथ सम्बन्ध अत्यन्त प्रगाढ़ होता था। यह सम्बन्ध कुंई निर्माण के पश्चात् भेंट देने भर तक सीमित नहीं था। कुंई खोदने वालों को वर्ष भर के तीज-त्यौहारों में विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर नेग एवं भेंट दी जाती थी और फसल आने पर खलिहान में उनके नाम से अनाज का एक अलग ढेर भी लगता था परन्तु समय के साथ रीति-रिवाजों और प्रथाओं में भी व्यापक परिवर्तन हुआ है। कभी चेजारो को जल देवता की तरह वर्षभर पूजने सम्मानित करने वाले लोग अब उसे मात्र एक मजदूर के रूप में देखने लगे हैं। नेग-भेंट और उपहार अब बीते समय की बात हो गये। अब तो चेज़ारो को कई निर्माण के लिए नकद मजदूरी प्रदान की जाती है। चेजारो भी ग्राम समाज के इस परिवर्तित व्यवहार के आगे मात्र मजदूरी लेकर ही कुंई की खुदाई चिनाई के कार्य को सम्पादित करने के लिए विवश अथवा सहमत प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 4. निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में कुंईयों पर ग्राम समाज का अंकुश लगा रहता है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा ?

उत्तर- राजस्थान में निजी और सार्वजनिक सम्पत्ति का विभाजन करने वाली मोटी रेखा कुंई के मामले में बड़े विचित्र ढंग से समाप्त हो जाती है। प्रत्येक परिवार की उसकी अपनी कुंई है। उसे बनाने और उससे मीठा पेयजल प्राप्त करने का अधिकार भी प्रत्येक परिवार के पास सुरक्षित है। किन्तु तथाकथित यह व्यक्तिगत कुंई जिस क्षेत्र अथवा स्थान पर बनती है, वह गाँव-समाज की सार्वजनिक जमीन होती है। सभी जानते हैं कि वर्षा काल में उस जगह बरसने वाला पानी ही बरसात के बाद भी वर्ष भर जमीन के भीतर रेत कणों के मध्य नमी के रूप में सुरक्षित रहेगा। यही नमी पुनः जल में परिवर्तित होकर इलाके की ‘कुंइयों’ का पेट भरती रहेगी। वर्षा की समाप्ति के साथ ही उस वर्ष के लिए जमीन में नमी की मात्रा तो तय हो गई है। अब उस क्षेत्र में बनने वाली प्रत्येक नई कुंई का अर्थ है, पहले से तय नमी का बँटवारा। या फिर यह कहिए कि पूर्व में कुंइयों की जल हिस्सेदारी में से कटौती। इसलिए बहुत आवश्यक होने पर ही ग्राम समाज नई कुंई के लिए अपनी स्वीकृति अथवा अनुमति प्रदान करता है। इस प्रकार, इस अनोखे ढंग से निजी होते हुए भी सार्वजनिक क्षेत्र में बनी इस कुंइयों पर ग्राम समाज का अंकुश बना रहता है।

5. कुंई निर्माण से संबंधित निम्न शब्दों के बारे में
जानकारी प्राप्त करें- पालरपानी, पातालपानी,
रेजाणीपानी |

उत्तर – मरुभूमि समाज के लिए उपलब्ध पानी को तीन
रूपों में बाँटा गया है:

•पहला रूप है पालरपानी। यह सीधे बरसात सेमिलने वाले पानी को कहा जाता है। यह धरातल परबहता है और इसे नदी, तालाब आदि में रोका जाता

• पानी का दूसरा रूप पातालपानी कहलाता है। यह
वही भूजल है जो कुओं में से निकाला जाता है।

•पालरपानी और पातालपानी के बीच पानी का
तीसरा रूप है, रेजाणीपानी | धरातल से नीचे उतरा
लेकिन पाताल में न मिल पाया पानी रेजाणी है।
रेजाणीपानी खड़िया पट्टी के कारण पातालीपानी से
अलग बना रहता है।

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